पंकज शुक्ल
Updated Wed, 25 Jan 2023 12:19 PM IST
सार
फिल्म‘पठान’में शाहरुख खान ने एक बार फिर अपने चाहने वालों का दिल जीतने के लिए देशभक्ति के फॉर्मूले का सहारा लिया है।
पठान रिव्यू - फोटो : अमर उजाला ब्यूरो, मुंबई
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Movie Review
पठान
कलाकार
शाहरुख खान , दीपिका पादुकोण , जॉन अब्राहम , डिंपल कपाड़िया , आशुतोष राणा और सलमान खान
लेखक
श्रीधर राघवन और सिद्धार्थ आनंद
निर्देशक
सिद्धार्थ आनंद
निर्माता
आदित्य चोपड़ा
रिलीज डेट
25 जनवरी 2023
रेटिंग
3/5
विस्तार
मुंबई में इन दिनों दिल्ली जैसी तो नहीं लेकिन ठीक ठाक ठंड हो रही है। रात में चौकीदार अलाव जलाए दिखते हैं। उधर, मुंबई पुलिस बीते कुछ दिनों से इसलिए परेशान रही है कि कहीं वाकई तो मौसम नहीं बिगड़ने वाला है। सुबह से ही सिनेमाघरों में बाहर से लेकर अंदर तक पुलिसकर्मी चौकन्ने दिखे। आखिर,‘पठान’जो आ रहा है। हिंदी सिनेमा के दर्शकों ने अफगानिस्तान के पठान पहले भी देखे हैं। कभी‘काबुलीवाला’में तो कभी‘खुदा गवाह’में। ये पठान‘लावारिस’है। घर वाले इसे किसी सिनेमाघर में छोड़ गए थे। कहता है, इसे भारत देश ने पाला है। पठान ये फिर भी अफगानिस्तान का है। वह ये भी कहता है कि, एक सोल्जर ये नहीं पूछता कि देश ने उसके लिए क्या किया, वह पूछता है कि वह देश के लिए क्या कर सकता है। आईएमडीबी की मानें तो शाहरुख की अब तक रिलीज हुई सारी फिल्मों में जो दो फिल्में दर्शकों को सबसे ज्यादा पसंद रही हैं, वे हैं‘स्वदेस’और‘चक दे इंडिया’।
पठान रिव्यू - फोटो : अमर उजाला ब्यूरो, मुंबई
देशभक्ति का फॉर्मूला
फिल्म‘पठान’में शाहरुख खान ने एक बार फिर अपने चाहने वालों का दिल जीतने के लिए देशभक्ति के फॉर्मूले का सहारा लिया है। कहानी का सिरा फिल्म वहां से पकड़ती है जहां रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (रॉ) के एजेंट कबीर की यूनिट में रहा उसका साथी एजेंट देश से बगावत कर देता है। वजह ये कि देश ने आतंकवादियों के चंगुल से उसकी गर्भवती पत्नी को छुड़ाने के लिए फिरौती नहीं दी। पठान पूछता है, अगर किसी मंत्री की बेटी को छुड़ाना होता तो?ये सियासी किस्सा फिर भी किसी को याद न आए तो आईएसआई की एजेंट का नाम ही रुबाई सईद रख दिया गया है। भारत और पाकिस्तान के दो एजेंटों की प्रेम कहानी‘टाइगर’सीरीज की फिल्मों में चल रही है। यहां पठान और रुबाई कीएक और रूमानी दास्तां बन रही है।दोनों मिलते हैं। पठान को धोखा मिलता है। लेकिन फिर भी दोनों मिलते हैं और एक ऐसे आतंकवादी हमले को टालने में लग जाते हैं जिसे अंजाम देने के लिए आईएसआई एजेंट के मुताबिक उसके देश की सरकार भी कभी मंजूरी नहीं देगी। यूं लगता है कि वेद प्रकाश शर्मा या सुरेंद्र मोहन पाठक के किसी उपन्यास के दो एजेंट लुगदी से निकलकर आईमैक्स के बड़े परदे पर प्रकट हो गए हैं।
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पठान रिव्यू - फोटो : अमर उजाला ब्यूरो, मुंबई
जॉन अब्राहम ने लगाई जान
फिल्म‘पठान’शुरू के एक घंटे तक कमाल की फिल्म है। बेहतरीन एडिटिंग। पठान का मिशन में शामिल होना। रॉ के अफसरों का आपस में नीति नियंताओं के फैसलों को लेकर बहस करना और फिर दुबई के एक सम्मेलन में शामिल होने जा रहे वैज्ञानिकों पर हमला। जॉन अब्राहम को यशराज फिल्म्स की ही फिल्म‘धूम’ने करियर का जीवनदान दिया था। इस बार भी जॉन वैसे ही एक किरदार में हैं। पता नहीं निर्देशक सिद्धार्थ आनंद ने‘धूम’देखी कि नहीं क्योंकि अगर देखी होती तो कम से कम‘धूम’के क्लाइमेक्स का आखिरी सीन हू ब हू कॉपी नहीं करते। विलेन को मारने के और भी सौ तरीके हैं। लेकिन सिद्धार्थ आनंद ने लगता है कि इस फिल्म को मसाला फिल्म बनाने के लिए जहां से जो मसाला मिल सका, उठा लिया है। पकवान अच्छा बना है। स्वादिष्ट भी है। लेकिन इसकी खुशबू भी ताजी होती तो फिल्म वाकई बेहद कमाल की फिल्म बन सकती थी। रक्तबीज का जैसे ही जिक्र आता है, याद आता है‘जंगलबुक’में आग को मिला नाम, रक्तफूल।
पठान रिव्यू - फोटो : अमर उजाला ब्यूरो, मुंबई
शाहरुख के गाने पर नाचते दिखे दर्शक
यशराज फिल्म्स में कहानियां चुनने के लिए विदेशी फिल्म स्कूलों से पढ़कर जो युवा आए हैं, उनकी टीम को थोड़ा हिंदी फिल्में भी देखने की जरूरत है। ज्यादा नहीं तो कम से कम बीते 25 साल की फिल्में ही ये लोग देख लें तो यशराज फिल्म्स की पिक्चरों में ताजगी लौट सकती है। लगातार फ्लॉप फिल्मों से जूझते रही इस कंपनी के लिए फिल्म‘पठान’फिर भी किसी संजीवनी बूटी से कम नहीं है। सुबह 7.30 बजे के तकरीबन हाउसफुल शो में लड़कियां शाहरुख खान के गाने पर नाचती दिखती हैं। शाहरुख खान जब भी देशभक्ति का कोई संवाद बोलते हैं तो लोग सीटियां बजाते हैं और टाइगर के गले का अंगौछा जब बदमाशों से भिड़े पठान को बचाने के लिए ट्रेन की छत से नीचे स्लो मोशन में आता है तो लोग सीटों से उछल पड़ते हैं। मतलब?मतलब साफ है‘बायकॉट बॉलीवुड’से हिंदी सिनेमा के चाहनेवालों को कोई लेना देना नहीं। फिल्म अच्छी होगी। बनी अच्छी होगी तो लोग बिना उसके सितारों का धर्म देखे, फिल्म देखने अब भी आना चाहते हैं।
पठान रिव्यू - फोटो : अमर उजाला ब्यूरो, मुंबई
विशाल, भव्य और रोमांचक एक्शन फिल्म
निर्देशक सिद्धार्थ आनंद ने शुरुआती चार फिल्में रूमानियत के एहसास की बनाने के बाद जब ऋतिक रोशन को लेकर पहली एक्शन फिल्म‘बैंग बैंग’बनाई थी तभी उनके नजरिये का पहला अंदाजा हिंदी सिनेमा के दर्शकों को लग गया था। वह सिनेमा सोचते वाकई बहुत विशाल और भव्य हैं। उनकी सोच और सही कहानी का संगम हुआ फिल्म‘वॉर’में। नतीजा सबको पता ही है। उसी सोच और उसी नजरिये की फिल्म‘पठान’भी है। कैमरा यहां सीधे कलाकारों के चेहरों पर ही नहीं आ टिकता है। वह आसमान से देखता है। आसपास के वातावरण से दर्शकों को बांधता है। फिर चाहे वह जॉन का अड्डा हो, बेशरम रंग का फिल्मांकन हो, दुनिया की सबसे गहरी मीठे पानी की झील की सतह पर बाइक चेज हो या फिर पहाड़ियों से गुजरती ट्रेन पर फिल्माया गया एक्शन सीक्वेंस। उनके निर्देशन में एक सफाई है, एक रोमांच है और है एक ऐसा आकर्षण जो सही सितारे और सही कहानी मिलने पर कमाल करता है। कमाल यहां भी उन्होंने किया है। दो घंटे 26 मिनट की फिल्म में वह दर्शकों को आखिर तक बांधे भी रखते हैं।
पठान रिव्यू - फोटो : अमर उजाला ब्यूरो, मुंबई
लावारिस बना खुदा गवाह
शाहरुख खान के लिए फिल्म‘पठान’को एक पारिवारिक मनोरंजन फिल्म होना बहुत जरूरी था और इसमें ये फिल्म कामयाब है। रुबाई एक सीन में पठान से पूछती भी है, ये लावारिस फिर खुदा गवाह कैसे बन गया। अमिताभ बच्चन ने अगर दिलीप कुमार की विरासत को हिंदी सिनेमा में आगे बढ़ाया तो शाहरुख खान को अमिताभ की परंपरा, प्रतिष्ठा और अनुशासन विरासत में मिला है। वह उसे संभालने की पूरी जद्दोजहद इस फिल्म मे करते दिखते हैं। पठान आखिर में आकर टाइगर से कहता है, 30 साल हो गए ये सब करते करते। लेकिन, इसे नए लड़कों पर नहीं छोड़ सकते। खुद ही करना होगा। यूं लगता है जैसे ये बातचीत तो किरदारों के बीच नहीं दो कलाकारों के बीच हो रही है। वह टाइगर के मिशन में मदद करने का वादा भी करता है। शाहरुख की उम्र अब चेहरे पर दिखने लगी है तो इरादतन पठान अब मोहब्बत की तरफ कदम तो बढ़ाता है लेकिन अंतरंगनहीं होता।
पठान रिव्यू - फोटो : अमर उजाला ब्यूरो, मुंबई
दीपिका की लौट आई दमक
पठान की मोहब्बत बनीं रुबाई के किरदार में दीपिका इस फिल्म का दूसरा आकर्षण हैं।‘बेशरम रंग’गाने से कहानी में उनका प्रवेश होता है लेकिन अगले ही दृश्य में उनका रंग बदरंग भी हो जाता है। पूरी कहानी में किसी किरदार का रंग अगर पल पल बदलता है तो वह दीपिका का ही है। वह फिल्म‘वॉर’में वाणी कपूर के किरदार की तरह सिर्फ फिल्म को रंगीन बनाने के लिए नहीं है। वह आखिर तक अपने पूरे रुआब में दिखती हैं। जॉन अब्राहम के लिए ये उनके करियर की सबसे बड़ी ऊंचाई है। जिन शाहरुख खान से मिलने के लिए कभी वह बेताब रहा करते थे, उन्हीं की फिल्म में वह खलनायक बने हैं। शाहरुख और दीपिका की ही तरह हाल की फिल्में उनकी भी कमजोर रही हैं। इस तिकड़ी के तीनों सितारों के लिए फिल्म‘पठान’बूस्टर डोज की तरह है और इसका बॉक्स ऑफिस पर सफल होना निश्चित ही इनके करियर को कुछ साल और मजबूती से आगे बढ़ाने में कामयाब रहेगा।
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